घी त्यार (घी त्योहार)— संस्कृति, मान्यताओं और स्वाद से पूर्ण एक लोक पर्व ।


उत्तराखंड में घी त्यार सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी लोकसंस्कृति का जीवंत उत्सव है। यह दिन परिवार, रिश्तों और परंपराओं को याद करने का अवसर देता है। पर्वत की धरती पर पीढ़ियों से यह त्योहार घी और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मनाया जाता है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। ये माना जाता है कि ग्रहों के राजा सूर्य देव जब कर्क राशि से निकलकर अपनी राशि ​सिंह में प्रवेश करते हैं तो उस दिन घी संक्रांति या सिंह संक्रांति मनाई जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद सूर्य देव की पूजा करते हैं और दान करते हैं। स्नान और दान करने से पुण्य मिलता है। खेती किसानी से जुड़े हुए इस त्यौहार पर पितरों और देव मंदिरों में फल और मौसमी सब्जियां चढ़ाई जाती हैं। भादो के आगमन पर खेती और पशुपालन से यह घी त्यार विशेष पर्व माना जाता है।घी त्यार अंकुरित फसल बोने के बाद मनाया जाने वाला त्योहार है। यह खेती और पशुपालन से जुड़ा एक ऐसा लोकपर्व है। यही वह समय है जब वर्षा के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में अंकुर आना शुरू हो जाते हैं। इसलिए किसान अच्छी फसल की कामना करके जश्न मनाते हैं।

इस लोक पर्व को ओलगिया त्यौहार भी कहते हैं। ओलगिया त्यौहार का अर्थ होता है भेंट देने वाला त्यौहार। ओळग का अर्थ होता है ,विशेष भेंट। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार चंद काल में अस्थाई कृषक अपने भू स्वामियों और बड़े शासनाधिकारियों फल और सब्जियों तथा दूध दही की डाली भर कर भेंट के रूप में देते थे। भेंट या उपहार के लिए प्रचलित शब्द ओळग का संदर्भ कुछ विद्वान ,मराठी भाषा के ओळखणे या गुजराती के ओळख्यूं शब्द से मानते हैं। घी संक्रांति के दिन दिए जाने वाले उपहारों में ,अरबी के पत्ते और मक्के व दूध दही प्रमुख होते हैं।


पारंपरिक व्यंजन और आशीर्वाद

इस दिन घरों में घी से बने खास पकवान तैयार किए जाते हैं—

  • घी से तली पूरियां

  • उरद दाल के पराठे

  • अरबी की सब्जी

  • गुड़, मेवे और अन्य मिठाइयाँ

ये सिर्फ खाने की चीज़ें नहीं, बल्कि आशीर्वाद और समृद्धि का प्रतीक हैं। जब परिवार के बड़े-बुजुर्ग बच्चों को घी से बना खाना खिलाते हैं, तो उसमें सिर्फ स्वाद नहीं बल्कि प्यार और दुआएं भी छिपी होती हैं।


बच्चों के लिए कहानी

कहा जाता है कि पुराने ज़माने में जब फसल घर आती थी, तो लोग घी त्यार पर नए अनाज से बने पकवान भगवान को अर्पित करते थे। फिर बच्चे गांव-गांव जाकर गीत गाते, नाचते और सबके घर से घी-गुड़ लेते थे। यह केवल खाने की परंपरा नहीं थी—बल्कि “साझा करने” और “मिलजुलकर खुश रहने” की सीख भी थी।पर्व को लेकर एक किंबदंती भी है। जो व्यक्ति इस दिन घी नहीं खाता है तो अगले जन्म में उसे घोंघे की योनी प्राप्त होती है।🥰 इसलिए सभी लोग सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद घी का सेवन जरूर करते हैं। नए अनाज अपने पितरों और कुल देवताओं को चढ़ाया गया।


बच्चों के लिए प्रेरणादायक संदेश

प्रिय बच्चो 🌸
आप हमारी संस्कृति की सबसे प्यारी कड़ी हो।
याद रखो—हमारे पास 30 से भी अधिक त्योहार हैं, और हर त्योहार हमारी पहचान, हमारी भाषा और हमारी परंपरा को जीवित रखता है।

👉 जब तुम स्थानीय लोक पर्व या त्यार मनाओ,
👉 जब तुम लोकगीत गाओ,
👉 जब तुम दादी-नानी की कहानियाँ सुनो,
तो तुम सिर्फ त्योहार नहीं मना रहे होते—बल्कि अपनी संस्कृति की रोशनी को आने वाले समय तक पहुँचा रहे होते हो।

तो बच्चों, वादा करो—
हम अपने त्योहार मनाते रहेंगे, अपनी परंपरा को आगे बढ़ाते रहेंगे और अपनी संस्कृति पर गर्व करते रहेंगे।


बच्चों के लिए गतिविधि

  • इस घी त्यार पर घर में बने घी के पकवान की तस्वीर खींचो 📸

  • दादी/नानी या मम्मी-पापा से इस त्योहार की कोई कहानी लिखवाओ ✍️

  • स्कूल या दोस्तों के साथ इसे शेयर करो, ताकि सबको अपनी संस्कृति की मिठास पता चले।

  • कब मनाई जाती है घी सक्रांति और उत्तराखंड मैं उसका महत्व?


  • घी संक्रांति हर साल भाद्रपद मास (भादो) की संक्रांति को मनाई जाती है। यानी 16 अगस्त के आसपास जब सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है।

    🪔 कैसे मनाई जाती है?


    1. इस दिन घरों में खासतौर पर पूरे गेहूं के आटे से बने पकवान, खासकर पूरे, पूरी और मालपुए बनते हैं।

    2. परंपरा है कि लोग गर्म पूरी या रोटी पर खूब सारा घी लगाकर खाते हैं।

    3. गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों में इसे स्वस्थ जीवन, शक्ति और ऊर्जा का पर्व माना जाता है।

    4. इस दिन लोग आपस में मिलकर रिश्तेदारों को पकवान खिलाते हैं।

    5. इसे धान की बुवाई के बाद, आराम और उत्सव का पर्व भी माना जाता है।

    🌾 क्यों मनाई जाती है?

    1. कृषि और मेहनतकश जीवन से जुड़ा त्योहार – बरसात और खेती का सबसे कठिन समय (धान की रोपाई का काम) पूरा हो चुका होता है। किसान इस दिन मेहनत की थकान मिटाने के लिए घी-पूरी खाते हैं।

    2. स्वास्थ्य का महत्व – बरसात के मौसम में शरीर को ताकत की ज़रूरत होती है, इसलिए घी, दही और ऊर्जा से भरपूर व्यंजन बनाए जाते हैं।

    3. धन और समृद्धि का प्रतीक – माना जाता है कि घी समृद्धि और शुद्धता का प्रतीक है।

    📖 इसके पीछे की दिलचस्प कहानी (लोककथा)

    गढ़वाल और कुमाऊं में एक मान्यता प्रचलित है कि –

    बहुत समय पहले एक गरीब किसान था। उसके पास खेत कम थे लेकिन वह बहुत मेहनत करता था। बरसात के मौसम में वह खेतों में धान की बुवाई करता और थक जाता। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा –

    “आज मैं तुम्हें खास रोटी खिलाऊँगी।”

    उसने गेंहूं के आटे की रोटी बनाकर उसमें खूब घी लगाया और पति को खिलाया। किसान ने जब रोटी खाई तो उसकी थकान मिट गई और उसके चेहरे पर खुशी आ गई।

    कहा जाता है उसी दिन से यह परंपरा चली कि धान की बुवाई के बाद संक्रांति पर घी लगी रोटी (पूरी) खाई जाती है, ताकि मेहनतकश किसानों को ताकत मिले।

    🙌 त्योहार का खास महत्व


    घी संक्रांति को “ऊर्जा, समृद्धि और स्वास्थ्य” का पर्व माना जाता है।

    यह केवल खानपान का त्योहार नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और उनकी जीवनशैली को सम्मान देने का प्रतीक है।

    इसे लोग बहुत उत्साह, आपसी मेलजोल और रिश्तों में मिठास बढ़ाने के लिए मनाते हैं।

    🙏 आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏

    ✨ आपका जीवन भी घी की तरह सुगंध और मिठास से भरपूर रहे। ✨


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शिक्षक भास्कर जोशी 

(शिक्षा से सूचना तक )

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